Friday, January 7, 2011

' मैं ' हिंदी हूँ

मैं हिंदी हूँ, तुम्हारी अपनी....... जिससे तुम्हारी पहचान जुड़ी है। कहीं हिंदुस्तानी के रूप में और कहीं भारतीय के रूप मे, कहीं मातृभाषा के रूप में मैं ही मैं हूँ। मैं वो हूँ जिसमे सभी भाषाएँ समागम हैं। आज जब तुम अपनी पहचान बना चुके हो तो तुम मुझसे बचना चाहते हो। लेकिन याद रहे जो अपने मूल को भूल जाते हैं वे कहीं के नहीं रहते न घर के न घाट के । इसलिए सुबह का भूल यदि शाम को घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। मुझे बड़ी पीड़ा होती है जब मैं अपनो के द्वारा गैर जैसा व्यवहार पाती हूँ। आज तुम्हें तुम्हारे होने का अहसास दिलाती हूँ। क्योंकि तुमसे मैं और मुझसे तुम हो। आज जब मेरा उपयोग मशीन में हो रहा है तो मुझे और भी अच्छा लग रहा है। क्योंकि कुछेक जो मुझे भूलते जा रहे हैं मैं उन्हें स्मरण कराना चाहती हूँ कि अपनो से कैसा रूठना। मुझे पता है कि कुछ युवा पीढ़ी ने मुझे हाईटेक बना दिया है और मुझे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी भेज दिया है। मैं उनका शुक्रगुजार करती हूँ।

लेकिन मुझे बहुत दुःख तो जब होता है जब मेरे अपने मुझे नकारने की कोशिश करते हैं। वे चार पैसे क्या कमाने लगे कि लग्जरी के आईने ने उनको सबकुछ विसरा दिया। एक कहावत है- एक सुनार सोने के आभूषण बना रहा था और एक लुहार लोहे का औजार। दोनों में अंतर देखिए कि सोने ने लोहे से कहा कि तू इतनी जोर से क्यों चिल्ला रहा है। तब लोहे ने कहा मैं लोहा हूँ और मेरी पिटाई भी लोहा कर रहा है। तुझे क्या पता जब अपना ही अपने को मारता है तो दर्द क्या होता है। ये तो था एक उदारण। लेकिन ये बात शत प्रतिशत सत्य है कि हमें अपनी भाषा की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए कहीं भी किसी भी समय चाहे सभा में या सम्मेलन मे हमे गर्व से कहना चाहिए कि हिंदी हमारी है । हमें निःसंकोच बोलना चाहिए।

जय हिंद जय हिंदी।

Wednesday, January 5, 2011

हिंदी के बढ़ते कदम...

साथियों जैसे जैसे हिंदी को गति मिलती है वैसे ही मन को अजीब से खुशी होती है। इसमें कोई दोराय नहीं है कि जहाँ मशीनी युग में सारी की सारी चीजें मशीन से जुड़ती जा रही हैं। वहीं पर हिंदी भी इससे अछूती नहीं रही है। आज तकनीकी ने इसे अपना लिया है और हिंदी उत्तरोत्तर वृद्धि पर है। लोगों का मानना था कि पहले मैन्युअल काम होता था तो हिंदी भी चलती थी और अब कंप्यूटर के आने से हिंदी में अपेक्षित वृद्धि नही हो रहा है। लेकिन मैं इस कथन से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ कि हिंदी की गति को विराम लग गया है मैं तो कहूंगा कि हिंदी को सही और उचित मार्ग मिल गया है। अब इसे और ज्यादा बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता। क्योंकि आज सर्च इंजन गूगल हो या मोजिला या अन्य कोई जैसे ही हिंदी लिखते हैं वह सारा का सारा संबंधित डाटा उपलब्ध करवा देता है।

बस हमें इसे समझने की जरूरत है। आज यूनीकोड के आने से ये सब संभव हो पा रहा है। क्योंकि लोगों को जब से इसका पता लगा है वे आसानी से टाइप कर सकते हैं और इसके बावजूद भी यूनीकोड के द्वारा आईएमई ने तो तमाम तरह के की-बोर्ड उपलब्ध करवा दिए हैं अब कोई भी किसी भी की-बोर्ड पर टाइप करके हिंदी का प्रयोग कर सकता है। इसके साथ साथ बदलते युग में और अधिक सुविधा तो जब हुई तब आईएमई -2 का प्रयोग होने लगा। अब इसमें तो आफ लाइन इंडिक की तरह काम करना शुरु कर दिया है। अब तो की-बोर्ड की समस्या से भी निजात मिल गई है। बस हमें जागरूक होने की जरूरत है हिंदी के क्षेत्र में तमाम साफ्टवेयर आ चुके हैं। इनके प्रयोग से हम सबको अवगत होना चाहिए। एक दूसरे को इसके बारे में बताते रहें और आगे बढ़ते रहें तभी हिंदी अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँचेगी।
धन्यवाद,

Wednesday, August 18, 2010

स्वतंत्रता दिवस महज एक औपचारिकता....

हमारे देश को आजदी मिले 63 साल हो चुके हैं लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते जा रहे हैं वैसे-वैसे एक नया रूप देखने को मिल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग इस स्वतंत्रता के पीछे का असली राज भूलते जा रहे हैं और अपनी जिंदगी अपने तरीके से गुजर-बसर कर रहे हैं। आजादी का क्यों मिली कैसे मिली आजादी के बाद क्या करना है, क्या दायित्व हैं सबकुछ मानो नदारद हो चुके हैं।
आज के भौतिकवादी युग में हमारी युवा पीढ़ी को तो राष्ट्रगान-और राष्ट्रगीत में अंतर ही नहीं पता और न ही किसी महापुरुष का नाम तक याद रहा है। उन्हें सिर्फ याद है तो नये हीरो-हीरोइन, और उनकी खुद की दुनिया। साथ ही इस बदलते स्वरूप में जहाँ सरकारी महकमें में न तो कोई उल्लास है न कोई उमंग महज एक औपचारिकता के रूप में लोग एकत्रित हुए और चले गए। बाकी अपनी छुट्टी का आनंद लेते हैं। सच मायने में देश के लिए जिसमें भाव, जज्बा, जुनून, हिम्मत नहीं वह पत्थर दिल ही कहलाएगा। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने इन पंक्तियों के माध्यम से देशवासियों के कोमल हृदय में रस भर दिया-

जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नही, ...

मेरे देशवासियों नई पीढ़ी के युगांधरों अपने स्वयं को जानो और पहचानो और अपने स्वदेश से प्यार करो.... उनकी कुर्बानी याद करो जो लौट कर वापस नहीं आए..........जरा याद करो कुर्बानी

जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!!

Friday, August 6, 2010

हिंदी का महत्व

आज आधुनिकता को देखते हुए जिस तरह हिंदी सर्वाधिक रूप से फैल रही है बहुत ही अच्छी बात है। इसका हम जितना हो सके प्रचार प्रसार करें ताकि लोगों की जुबां पर सिर्फ एक ही नाम आए हिंदी-हिंदी और सिर्फ हिंदी। क्योंकि यह बात सत्य है कि हिंदी ही सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन जो लोग अंग्रेजी बोलते हैं सिर्फ वो ही लोग हिंदी से परहेज करते हैं बाकी सभी थोड़ी बहुत हिंदी जानते ही हैं। इसलिए हमें सकारात्मक रूप से हिंदी का प्रचार प्रसार करना चाहिए। आज सर्ज इंजन हिंदी में उपलब्ध हैं। तमाम ऐसे कार्य हिंदी में हो रहे हैं जिनकी हम कल्पना करते थे।

अब वो दिन दूर नहीं की पूरे विश्व में हिंदी अछूती रहे। अब वो दिन आ गया है कि अधिकाधिक लोगों को प्रोत्साहित कर सही तरीके से हिंदी से अवगत कराएं इसके सिवाय कोई और विकल्प ही नही है क्योंकि सबसे सरल और सरज हिंदी ही है। वैज्ञानिक पद्धति के रूप मे भी हिंदी विकसित हुई है। हिंदी के स्वर और व्यंजन अपने आप एक क्रम में हैं यह पद्धति भी एक क्रम बद्ध रूप से सृजित हैं। हिंदी ने कई सारी चुनौतियों को स्वीकारा है और हरेक पर खरी उतरी है। अंततोगत्वा हिंदी को विकसित करें और देश का कल्याण करें। जय हिंद जय हिंदी।

Thursday, June 24, 2010

आखिर कौन सोचेगा हिंदी के बारे में ! ! !

भारत सरकार द्वारा तो हिंदी को सिर्फ एक अमलीजामा पहना दिया गया है। केवल हर तिमाही में रिपोर्ट मंगाना और उसी रिपोर्ट के आधार पर पुरस्कार का वितरण करना आदि लेकिन क्या इन सबसे हिंदी का भला हो पा रहा है ? इस सबके वाबजूद इसे केवल लोग औपचारिकता ही मानते हैं पुराने आंकड़ो के अनुसार प्रत्येक तिमाही में आंकड़ों को आगे पीछे कर तिमाही की खाना पूर्ति के साथ हिंदी की भी खाना पूर्ति हो जाती है। भारत सरकार के उद्यमों में चाहे बैंक या किसी अन्य उपक्रम में हिंदी के साथ लगभग यही हो रहा है। और यही हाल चलता रहेगा जबतक कि ऊपर बैठे लोग इसे कार्यान्वित नहीं करेंगे ! इसके पीछे एक कारण जो नजर आता है वो है रोजगार का लोगों को हिंदी के नाम पर रोजगार मिल गया लेकिन वे हिंदी के प्रति वफादार नहीं बने। पुराने भी होगए हैं तो सीनियर कहलाने में उन्हें ज्यादा अच्छा लगता है बजाय हिंदी के काम में दिलचस्पी लेने के। नये भर्ती हुए लोगों से कुछ उम्मीद भी की जाए तो पुराने लोगों को सिस्टम पूरा बदला-बदला सा लगता है। वे चाहते हैं जैसे परिपाटी चल रही थी वैसी ही चलती रहे, तो जो भी नये लोगों से उम्मीद थी वो भी खत्म होने की कगार पर हो गई। यही सब चलता रहा तो आखिर कौन सोचेगा.........

खासकर सरकारी बैंकों में कहीं कहीं यह पूरी तरह से लागू होता है। जरा सोचिए आखिर क्या होगा........

Tuesday, June 15, 2010

बदलती सोच.......

यह मानने से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत में विकास हुआ है। और भारत विकासशील देश है यहाँ अपार संभावनाएं भी हैं। लेकिन इस विकास के पीछे देखें तो हमने अपनी मूल पहचान और अपना अस्तित्व को भी मिटाने में कोई कमी नहीं की है। सुबह के बाद शाम का होना दुख के बाद सुख, इसी तरह प्राचीनता के बाद नवीनता आना यह एक सतत प्रक्रिया है, लेकिन अपने अस्तित्व को बचाए रखना भी हमारा ध्येय होना चाहिए। आज लोगों की सोच बदलती जा रही है, इस वैश्वीकरण के युग में हरेक आगे बढ़ने की सोच रहा है, किसी भी प्रकार से, किसी भी तरह है। सबकी सोच में परिवर्तन हुआ है रहन-सहन से लेकर खान पान तक पूरा ही बदलता जा रहा है। बदलते रिश्ते, बदलता परिदृश्य, बढ़ती दूरियाँ..... सबकुछ धीरे धीरे बदलता जा रहा है। इन सबके बावजूद हम अपनी पुरानी धरोहर को नए रूप में संजोने की कोशिश करते हैं जबकि वह पहले से ही विद्यमान है। एकता से अखंडता की ओर लोग जाते जा रहे हैं भारत में संयुक्त परिवारों का विघटन होता जा रहा है। इन सबके पीछे सिर्फ और सिर्फ आगे बढ़ने की होड़......

लेकिन गरीब तो कल भी गरीब था और आज भी गरीब ही है,

Monday, April 26, 2010

हिंदी को जन-जन तक पहुँचाना.......

हिंदी को जन-जन तक पहुँचाना ही होगा। तभी आम जन को हिंदी की ताकत का एहसास होगा और वे भी एक सूत्र में बंध सकेंगे। हम सब जानते हैं कि हिंदी का हस्तक्षेप हर मायने में बढ़ता जा रहा है बस इसको अपनाने की जरूरत है चाहे पर प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो या किसी अन्य में हिंदी हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही है। हमें भी इसको सही तरीके से प्रचार प्रसार करने का आवश्यकता है क्रमबद्ध तरीके इसे इसे अपनाएंगे तो यह बाकई में आगे तक जाएगी और अन्य देशों में यह प्रचलित होगी। जैसे- भारत का मतलब हिंदी.......