Wednesday, August 18, 2010

स्वतंत्रता दिवस महज एक औपचारिकता....

हमारे देश को आजदी मिले 63 साल हो चुके हैं लेकिन जैसे-जैसे साल बीतते जा रहे हैं वैसे-वैसे एक नया रूप देखने को मिल रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग इस स्वतंत्रता के पीछे का असली राज भूलते जा रहे हैं और अपनी जिंदगी अपने तरीके से गुजर-बसर कर रहे हैं। आजादी का क्यों मिली कैसे मिली आजादी के बाद क्या करना है, क्या दायित्व हैं सबकुछ मानो नदारद हो चुके हैं।
आज के भौतिकवादी युग में हमारी युवा पीढ़ी को तो राष्ट्रगान-और राष्ट्रगीत में अंतर ही नहीं पता और न ही किसी महापुरुष का नाम तक याद रहा है। उन्हें सिर्फ याद है तो नये हीरो-हीरोइन, और उनकी खुद की दुनिया। साथ ही इस बदलते स्वरूप में जहाँ सरकारी महकमें में न तो कोई उल्लास है न कोई उमंग महज एक औपचारिकता के रूप में लोग एकत्रित हुए और चले गए। बाकी अपनी छुट्टी का आनंद लेते हैं। सच मायने में देश के लिए जिसमें भाव, जज्बा, जुनून, हिम्मत नहीं वह पत्थर दिल ही कहलाएगा। राष्ट्र कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने इन पंक्तियों के माध्यम से देशवासियों के कोमल हृदय में रस भर दिया-

जो भरा नहीं है भावों से,
जिसमें बहती रसधार नहीं
वह हृदय नहीं है पत्थर है
जिसमें स्वदेश का प्यार नही, ...

मेरे देशवासियों नई पीढ़ी के युगांधरों अपने स्वयं को जानो और पहचानो और अपने स्वदेश से प्यार करो.... उनकी कुर्बानी याद करो जो लौट कर वापस नहीं आए..........जरा याद करो कुर्बानी

जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!! जय हिंद !!!

Friday, August 6, 2010

हिंदी का महत्व

आज आधुनिकता को देखते हुए जिस तरह हिंदी सर्वाधिक रूप से फैल रही है बहुत ही अच्छी बात है। इसका हम जितना हो सके प्रचार प्रसार करें ताकि लोगों की जुबां पर सिर्फ एक ही नाम आए हिंदी-हिंदी और सिर्फ हिंदी। क्योंकि यह बात सत्य है कि हिंदी ही सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। लेकिन जो लोग अंग्रेजी बोलते हैं सिर्फ वो ही लोग हिंदी से परहेज करते हैं बाकी सभी थोड़ी बहुत हिंदी जानते ही हैं। इसलिए हमें सकारात्मक रूप से हिंदी का प्रचार प्रसार करना चाहिए। आज सर्ज इंजन हिंदी में उपलब्ध हैं। तमाम ऐसे कार्य हिंदी में हो रहे हैं जिनकी हम कल्पना करते थे।

अब वो दिन दूर नहीं की पूरे विश्व में हिंदी अछूती रहे। अब वो दिन आ गया है कि अधिकाधिक लोगों को प्रोत्साहित कर सही तरीके से हिंदी से अवगत कराएं इसके सिवाय कोई और विकल्प ही नही है क्योंकि सबसे सरल और सरज हिंदी ही है। वैज्ञानिक पद्धति के रूप मे भी हिंदी विकसित हुई है। हिंदी के स्वर और व्यंजन अपने आप एक क्रम में हैं यह पद्धति भी एक क्रम बद्ध रूप से सृजित हैं। हिंदी ने कई सारी चुनौतियों को स्वीकारा है और हरेक पर खरी उतरी है। अंततोगत्वा हिंदी को विकसित करें और देश का कल्याण करें। जय हिंद जय हिंदी।